Wednesday, August 10, 2011

खुश किस्मत है इंसान रो कर आंसू तो बहा सकता

खुश किस्मत है

इंसान रो कर

आंसू तो बहा सकता

किसी कंधे का सहारा

ले सकता

व्यथा अपनी व्यक्त

कर सकता

सहानभूती के दो शब्द

पा सकता

गम हल्का कर सकता

उन मछलियों से पूंछो

गम में वो भी

तड़पती होंगी

दर्द में रोती होंगी

आंसूं भी बहाती होंगी

व्यथा उनकी किसको

दिखती नहीं

आँसू भी पानी में

घुल मिल जाते

ना सहारा ,

ना सहानभूती

किसी की

ना शिकवा ना

शिकायत किसी की

चुपचाप सहती रहती

निरंतर जीवन जीती

अरे इंसानों

मछलियों से सीख लो

हर छोटी बात पर

चीखा चिल्लाया ना करो

कभी सब्र से भी काम

लिया करो

10-08-2011

1327-49-08-11

(खलील जिब्रान के लेख से प्रेरित)

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