Friday, August 12, 2011

दो मुट्ठी मिट्टी मेरी कब्र पर डाल देना

इंतज़ार तुम्हारा

ज़िन्दगी भर किया

रातों को जागता रहा

निरंतर

अश्क बहाता रहा

इज़हार-ऐ-मोहब्बत का

जवाब ना मिला

मेरे हसरतों का खून

हो गया

अब आखिरी इल्तजा

सुन लो मेरी

मरने के बाद

सुकून के खातिर

दो मुट्ठी मिट्टी मेरी

कब्र पर डाल देना

जो मुझे ना मिल सका

मेरी लाश को दे देना

अपनी बेरुखी पर पर्दा

डाल देना

12-08-2011

1347-69-08-11

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