कहाँ तो सोचा था
हंसने का
वक़्त आ गया
अब मुस्काराना भी
मुमकिन ना रहा
मेरा नसीब मुझसे
रूठ गया
हँसने की सोचूँ ?
वक़्त आ गया
अब मुस्काराना भी
मुमकिन ना रहा
मेरा नसीब मुझसे
रूठ गया
हँसने की सोचूँ ?
या उसे मनाऊँ ?
किनारे
किनारे
पहुँचने से पहले
निरंतर नैया
यूँ ही डगमगाती
मंजिल से दूर
निरंतर नैया
यूँ ही डगमगाती
मंजिल से दूर
रह जाती
19-08-2011
1382-104-08-11
1382-104-08-11
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