Saturday, August 13, 2011

हर शख्श में डूबा हुआ

हर शख्श

व्यथा में डूबा हुआ
आँखों से आंसू

रोक नहीं पा रहा

परमात्मा से पूँछ रहा था
इंद्र किस जुर्म की

सज़ा दे रहा

धरती को सूखा रख रहा

पानी की एक बूँद

नहीं बरसा रहा

हर चेहरे पर

चिंता की लकीरें
हर पेट भूख के

डर से घबरा रहा
निरंतर

असमंसज में पडा हुआ
मंदिर से मस्जिद तक

दुआ कर रहा
आशा और विश्वाश

की परीक्षा ले रहा
जीने के लिए झूझ रहा

13-08-2011

1354-76-08-11

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