Friday, August 19, 2011

अब यादें ही काफी है जीने के लिए

ज़रुरत नहीं
आंसू ही बहुत हैं
प्यास
बुझाने के लिए
किसी और जनाजे में
शामिल होने की
ज़रुरत नहीं
खुद के गम ही
बहुत हैं
रोने के लिए
दिल निरंतर
इतनी बार टूटा
हसरतें नहीं बची
फिर दिल
लगाने के लिए
अब यादें ही काफी है
जीने के लिए
19-08-2011
1381-103-08-11

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