Tuesday, August 2, 2011

वो यादों में सिमटी रह जाती

दिन भर की

ज़द्दोज़हद के बाद

रात में थक मांद कर

सोने की कोशिश करता

उसका नाम याद

आ जाता

यादों का सिलसिला

शुरू होता

तकिये पर सर कभी दाएँ

कभी बायें पलटता

करवटें बदलता रहता

निरंतर उसे

याद करना भी ज़रूरी

नींद को भी पता

वो भी साथ नहीं देती

किसी तरह रात कटती

भोर होते ही शोर से

नींद से भरी आँखें खुलती

रोज़ की ज़द्दोज़हद

शुरू हो जाती

वो यादों में सिमटी

रह जाती

02-08-2011

1288-10-08-11

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