Wednesday, August 17, 2011

क्या दिया ज़िन्दगी ने मुझको खुद से पूछता हूँ

क्या दिया

ज़िन्दगी ने

मुझको

खुद से पूछता हूँ

अतीत को

टटोलता हूँ

कभी हंसता हूँ

कभी रोता हूँ

निरंतर सोच में

पड़ता हूँ

जो करना नहीं

चाहिए था

उसका कैसे

सुधार करूँ ?

भविष्य को

चैन से भर दूं

या बचा समय

ऐसे ही काट लूं ?

क्या खुद को

माफ़ कर पाऊंगा ?

क्या चैन से

मर पाऊंगा ?

उत्तर मिलता नहीं

क्या इसे कर्मों की

सज़ा समझूँ ?

आगे दिल

किसी का

ना दुखाऊँ

वो रास्ता

समझूँ ?

17-08-2011

1370-92-08-11

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