Sunday, November 11, 2012

मेरी तमन्ना है कोई तमन्ना ही नहीं रखूँ



मेरी तमन्ना है
कोई तमन्ना ही नहीं रखूँ
ये पूरी हो जाए
तो नयी तमन्ना क्यों रखूँ
तमन्ना का क्या
 रोज़ उठती रोज़ मरती है
एक पूरी हो जायेगी
तो दूसरी सर उठायेगी
सुकून से जीना है
तो लगाम कसनी पड़ेगी
उठने से पहले हमेशा के लिए
दबानी पड़ेगी
839-23-11-11-2012
शायरी,तमन्ना

1 comment:

मेरा मन पंछी सा said...

गहन भाव लिए रचना..
आपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
:-)