205--02-11
जेठ की दोपहर
सूरज अपने यौवन पर
दुर्बल वृद्ध रिक्शा
चला रहा
पसीने से लथ पथ
हो रहा
बार बार थकना
बार बार रुकना
होता रहा
सवारी से रहा ना गया
प्रश्न किया
इतने कृशकाय हो
क्यों दुर्बल शरीर को
कष्ट देते
निरंतर थकते,
काम मरने के करते
कोई और काम करो
जवाब आया
बूढ़ी माँ का अकेला
सहारा
पेट उसका पालना
किसी तरह जीवन
चलाना
उसके खातिर जीना
उसके जाने के साथ
मुझे भी जाना
तब तक,मर मर कर
जीना
कर्तव्य पुत्र का
निभाना
05-02-2011
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