मैं
निरंतर,इंतज़ार करता
उगते सूर्य का
जो रोज़ नया सवेरा लाता
नयी आशाओं का संचार करता
बरखा की बोछारों का
जो सूखी धरती को भिगो
बीजों को प्रस्फुटित करती
डूबते सूरज की किरणों का
जो जाते जाते भी,लालिमा बिखेरती
छाई हुई हरीतिमा का
जो जीवित को,जीवन देती है
सुनना चाहता हूँ,पक्षियों का कलरव
जो निस्तब्धता में,चंचलता लाता
फूलों पर मंडराती हुई तितलियों का
जो अपनी रंगीनी से फूलों का
वैभव बढाती
मुझे चाहिए,हर पेड़ पर
महकते हुए फूल
जो सन्देश महकने का,
देते
निरंतर,इंतज़ार करता हूँ,
इन सब का
जिन से,प्रेरित हो हर्षोल्लास से
जीता हूँ
13-10-2010
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
1 comment:
good
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