Monday, August 1, 2011

बदकिस्मत भी,खुशकिस्मत भी (काव्यात्मक लघु कथा)

मेरे घर ख़ास मेहमान

आना वाला था

ज़िन्दगी में पहली बार

किसी लडकी ने हाँ कहा

दिल बल्लियों उछल रहा था

शानदार स्वागत के लिए

करीने से चीज़ें सज़ायी

पड़ोस से नयी कुर्सियां लाई गयीं

मांगे हुए गुलदान में फूल लगाया

पैसे उधार लेकर मिठायी,

नमकीन मंगायी

इस्त्री किये पुराने कपड़ों को

कलफ और ,सैंट लगा कर

नया दिखाने का प्रयास किया

बालों को करीने से सैट किया

खुद को बार बार शीशे में देखता

खुद को अभिनेता से

कम नहीं समझ रहा था

क्या कहूंगा ?क्या जवाब दूंगा?

हर बात को बार बार दोहराता

निरंतर मनुहार और कई दिनों के

इंतज़ार के बाद उसने हाँ भरी

पूरी तरह से

प्रभावित करना चाहता

बार बार दरवाज़े पर

जा खडा होता

समय निकलता जा रहा

अब उनका आना ना हुआ

निराशा बढ़ने लगी

तभी घंटी बजी

कोई दरवाज़े पर खडा था

देखते ही कहने लगा

मेमसाब ने संदेश भिजवाया

आज ज़रूरी काम हो गया

इसलिए आना ना हुआ

फुर्सत में होंगी तब आयेंगी

आप पूछते रहना

चुपचाप सर हिलाया

निराशा में घर से बाहर

निकल गया

बगीचे में बैठ कर

पक्षियों को देखेगा

गम हल्का करेगा

नर्म घास पर जा कर

बैठा ही था

जानी पहचानी हँसी

सुनायी दी

मुड़ कर देखा तो

कौने में पेड़ के पीछे

एक प्रेमी जोड़ा हाथ में

हाथ लेकर

दुनिया से बेखबर

प्यार की दुनिया में खोया था

छुप छुपा कर

थोड़ा नज़दीक जा कर देखा

तो एक नौजवान के साथ

वही थी

जिसका महीनों से

इंतज़ार कर रहा था

सर झुका कर परेशान

घर की और लौटने ही लगा था

एक लड़का पास आकर

कहने लगा

इसका वक़्त ख़त्म होने वाला है

दो सौ रूपये लगेंगे

चाहो तो थोड़ी देर में

तुम्हारे साथ होगी

आज समय नहीं है तो

एडवांस दे दो

कल का टाइम फिक्स कर लो

कुछ और कहता उससे पहले ही

वहां से निकल गया

सीधे मंदिर जा कर

भगवान् को धन्यवाद दिया

अब कभी किसी को

घर आने का निमंत्रण नहीं देगा

किसी लडकी से

दोस्ती करने से पहले

सौ बार सोचेगा

01-08-2011

1279-01-08-11

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