बड़े अरमानों से
खटखटाया
दरवाज़ा उनके घर का
दरवाज़ा खुला ,
वो सामने खड़े थे
बड़ी बेदर्दी से
ठोकर मार कर
निकाला हमें
ये भी ना पूछा
क्यूं आये
हम उनके घर पे ?
वो निरंतर मुखालते में
रहते थे
सब को एक नज़र से
देखते थे
हम न्योता हमारी शादी का
देने गए थे
उन्होंने समझा प्यार का
इज़हार करने आये हैं
04-04-2011
598—31 -04-11
1 comment:
हम न्योता हमारी शादी का
देने गए थे
उन्होंने समझा प्यार का
इज़हार करने आये हैं....
रोचक मुग़ालता...
अच्छी लगी आपकी कविता.... बधाई.
Post a Comment