Monday, April 4, 2011

वो निरंतर मुखालते में रहते थे

बड़े अरमानों से
खटखटाया
दरवाज़ा उनके घर का
दरवाज़ा खुला ,
वो सामने खड़े थे
बड़ी बेदर्दी से
ठोकर मार कर 
निकाला हमें
ये भी ना पूछा
क्यूं आये 
हम उनके घर पे ?
वो निरंतर मुखालते में
रहते थे
सब को एक नज़र से
देखते थे
हम न्योता हमारी शादी का
देने गए थे
उन्होंने समझा प्यार का
 इज़हार करने आये हैं
04-04-2011
598—31 -04-11
   

1 comment:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

हम न्योता हमारी शादी का
देने गए थे
उन्होंने समझा प्यार का
इज़हार करने आये हैं....


रोचक मुग़ालता...
अच्छी लगी आपकी कविता.... बधाई.