Saturday, December 1, 2012

जीवन मिथ्या मृत्यु सत्य बन जायेगी



रक्त की धमनियों सी
मेरे मन की धमनियां भी
मेरे काले सफ़ेद विचारों को
अविरल मस्तिष्क में
गतिमान रखती हैं
जिस दिन
सांस रुक जायेगी
ह्रदय की धड़कन
बंद हो जायेगी
मन की धमनियां भी
शिथिल पड़ जायेंगी
विचारों की गति थम
जायेगी
विचार भी टूटे हुए तारे से
काल के गाल में गुम हो
जायेंगे
बची रह जायेंगी तो बस
कुछ अस्थियाँ और
राख का ढेर
जीवन मिथ्या
मृत्यु सत्य बन जायेगी
884-03-01-12-2012
जीवन, मृत्यु

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