Wednesday, December 5, 2012

कभी जब लिखने बैठता हूँ



कभी जब लिखने
बैठता हूँ
शब्द खो जाते हैं
कलम रुक जाती है
कागज़ रीता रह जाता है
मन से पूछता हूँ
ऐसा क्यों होता है
बुझे चेहरे से मन
कहता है
जब मैं व्यथित होता हूँ
ऐसा होता है
पर स्वयं में विश्वास
रखोगे
तो कल ऐसा नहीं होगा
खोये शब्द मिल जायेंगे
कलम चलने लगेगी
कागज़ भी
रीता नहीं रहेगा
निश्चित ही
एक अच्छी रचना का
जन्म होगा
पढ़ कर तुम्हें भी आनंद
मिलेगा
902-20-05-12-2012
जीवन,व्यथित,व्यथा

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