Saturday, December 8, 2012

मुझे हक नहीं



मुझे हक नहीं
तुम पर नाराज़ होने का
ना हक तुम्हारी बेरुखी पर
सवाल पूछने का
उम्मीदों पर जब नहीं
उतर सका खरा
नहीं दे सका जो चाहा
तुमने मुझसे
निभा ना सका उन वादों को
जो किये तुमसे
मुझे हक नहीं तन्हाई में भी
आसूं बहाने का
जब तुम्हारी हसरतों के
लायक ही ना था
मुझे हक नहीं तुम पर
इलज़ाम लगाने का
गुनाहगार भी मैं हूँ
सज़ा का हक़दार भी मैं  हूँ
जिसने दिल लगाया था
इक पत्थर दिल से
923-41-08-12-2012
दिल,हक, हसरत,हसरतें,मोहब्बत, शायरी,

No comments: