Sunday, December 2, 2012

सन्नाटों का शोर



शोर ही शोर
हर तरफ शोर ही शोर
दिखावे का शोर
स्वार्थ का शोर
पर मन में सन्नाटा
ज़िन्दगी इस हद तक
उलझ गयी शोर में
रह गया केवल
सन्नाटों का शोर
बस गया दिलों में
बस गया रिश्तों में
प्यार
भटक गया अहम् में
रह गया बस
चेहरे पर चेहरा चढ़ाना
झूठी मुस्कान
चिपकाए घूमना 
ज़िन्दगी जीना नहीं
ज़िन्दगी काटना
बन गया सबब
जीने का
886-05-02-12-2012
जीवन,ज़िन्दगी,शोर

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