Saturday, December 15, 2012

कभी कभी मैं भी हैवान बन जाता हूँ



कभी कभी मैं भी
हैवान बन जाता हूँ
लोगों के तीरों का
जवाब
तीरों से दे देता हूँ
बेसब्री की गर्मी से
खुद
मन के गुलशन को
झुलसा देता हूँ
उनसे ज्यादा ज़ख्म
खुद को देता हूँ
जिन्हें आदत है
नफरत से जीने की
उनके जाल में फंस
जाता हूँ
कभी कभी मैं भी
हैवान बन जाता हूँ
935-54-15-12-2012
बेसब्री,नफरत,क्रोध,जीवन

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