Saturday, December 15, 2012

सर उठा कर जिया हूँ अब सर झुका कर कैसे जियूं ?



बहुत प्रयत्न किया
पर समझ नहीं पाया
कैसे लोगों को खुश करूँ ?
क्या उनकी हर बात में
हाँ में हाँ मिला लूँ
झूठ को सच कहूँ ?
या ज़माने के साथ चलूँ
मुखोटा पहन लूँ
उनकी खुशामद करूँ
झूठी प्रशंसा करूँ
पर यह तो
हो नहीं सकता
खुद के लिए
कभी झूठ नहीं बोला
उनके लिए कैसे बोलूँ ?
कई नाराज़ हो गए
पहले भी
कई और नाराज़
हो जायेंगे आगे भी
अब तक
सर उठा कर जिया हूँ
अब सर झुका कर
कैसे जियूं ?
जो ना कर सका
जीवन में अब तक
बचे हुए दिनों के लिए
कैसे करूँ ?
959-78-15-12-2012
जीवन,मुखोटा,प्रशंसा,खुशामद,सच,झूठ

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