226--02-11
शमा
मोहब्बत की
दिखती नहीं
इसे जलाने की
जरूरत नहीं
कोई तपन इस की
तपन से ज्यादा नहीं
आशिकों के दिल में
रहती
माशूक की ठंडक से
ठंडी होती
निरंतर दिलों को
जलाती
जलने के बाद
राख भी दहकती
लौ इसकी कभी
बुझती नहीं
रोज़ नयी कुर्बानी
लेती
07-02-2011
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