207--02-11
गम सहना अब आदत
बन गया
ज़िन्दगी का हिस्सा
हो गया
बार बार ठुकराया
गया
"निरंतर"ज़ख्म खाता
गया
अब दर्द भी नहीं
होता
ना मलहम काम
करता
दिन बिना चोट गुजरता
ऐतबार दिल को
ना होता
इंतज़ार रात का
करता
जो रह गया दिन में
रात को हो जाए
ख्वाइश लोगों की
पूरी हो जाए
दिल-औ-जिस्म पत्थर
हो गए
जीने के मायने बदल
गए
आँख मुन्देगी सो
जाएँगे
ज़ख्म तब तक खाते
जाएँगे
गम यूँ ही सहते
जाएँगे
05-02-2011
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