आखें
खुली माँ दिखी
जुबान खुली,माँ बोला
चोट लगी
मुंह से माँ निकला
रास्ता भूले,घबरा कर
माँ क्या करूँ कहा?
पेट ने पुकारा
माँ भूख लगी कहा
झूंठ पकड़ा गया
माँ बचा लो सुना
बीमार हुए,माँ बोला
सवेरे उठना
याद माँ को किया
कसम खाई
नाम माँ का लिया
जब चाहा इस्तेमाल
किया
“निरंतर” माँ को
याद किया
माँ ने दूध अपना
पिलाया
खुद जागी तुम्हें
सुलाया
खुद रोई तुम्हें
हँसाया
दुःख में तुम्हारे आंसू
बहाया
उँगली पकड़ चलना
सिखाया
कभी ये भी सोचा?
माँ को क्या दिया
नहीं दिया तो अब
दे दो
समय आ गया
पछताओ उस से पहले
माँ का सम्मान करो
पाप अपने धो लो
माँ को
माँ का स्थान दे दो
03-11-2010
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