238—01-11
ज़िन्दगी
तमाशा मौत तक के
सफ़र का
खेल गम और खुशी का
झगडा भगवान् और शैतान का
बरात यादों की निरंतर चलती
हर शख्श के दिल-ओ-जान में
ज़ज्ब होती
परेशान अंत तक करती
ज़िन्दगी उम्मीद ना उम्मीद
की बस्ती
रोते हुए को हंसना
हँसते को रोना सिखाती
ज़िन्दगी मेहमान कुछ दिनों की
रुखसत होने से चुपचाप रहती
कशमकश ज़िन्दगी की
जन्म से शुरू होती
मौत पर ख़त्म होती
10-02-2011
No comments:
Post a Comment