241—01-11
कदम
इंसान के क्यों
भटकते
चलते चलते डगर
बदलते
क्यों अपनी मंजिल
भूलते
ज़न्नत का रास्ता,
हैवानियत से ढूंढते
निरंतर ईमान खोते
बेईमानी गले लगाते
ज़मीर अपना बेचते
खिजा में बहार ढूंढते
दिखाने को पूजा करते
काम उलटा करते
ना खुदा से डरते
ना उस में विश्वाश
रखते
रास्ता दोजख का
लेते
ऊपर भी जाना है
उसको जवाब देना है
क्यों भूलते ?
10-02-2011
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