228--02-11
लक्ष्य पाना था
आरोही को
पहाड़ पर चढ़ना था
चोटी तक पहुचना था
दुनिया को ऊंचाई से
देखना था
मन में विश्वाश लिए
चल पडा डगर पर
गिरता पड़ता रहा
थकता तो ,
रुक कर विश्राम करता
पसीना पौंछता,
गला जल से तर करता
ध्यान भटकता नहीं
लक्ष्य सिवाय कुछ
दिखता नहीं
"निरंतर" बादलों को
पास से देखने की इच्छा
मन में संजोए
उबड़ खाबड़ डगर पर
चलता रहा
जल,भोजन समाप्त हुआ
फिर भी व्यथित ना हुआ
परमात्मा से प्रार्थना
करता रहा
लक्ष्य तक पहुंचा दे
चाहे फिर प्राण ले ले
फिर बेसुध हो गया
आँख खुली
कई आरोहियों से घिरा
पहाड़ की चोटी पर था
उन्होंने सहारा दिया
उसे लक्ष्य तक पहुंचाया
आज समझ आया
लक्ष्य प्राप्ती के लिए
सहारा भी लेना होता
हिम्मत के साथ
लोगों को भी साथ
रखना होता
रखना होता
जो मिलजुल कर
कर सकते
कर सकते
अकेले कठनाई से होता
07-02-2011
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