Monday, August 1, 2011

हास्य कविता-निरंतर पिटते,गाली खाते फिर भी हँसते,मुस्काराते

हँसमुखजी की निरंतर
हंसने,मुस्काराने की आदत
कभी लोगों को भाती
कभी कहर ढाती
कई बार उनके लिए
आफत बन कर आती
एक मोहतरमा का मेकअप
बरसात में धुल गया
उम्र की हकीकत का
पता चल गया
हँसमुखजी का
ठहाका गडबड कर गया
उनके पिटने का कारण
बन गया
मोहतरमा का मियाँ
फौत हो गया
हँसमुखजी का मुस्काराना
बंद ना हुआ
एक तमाचा खाना पडा
बैठक से बाहर जाना पडा
अफसर की विग गिर गयी
चाँद दिख गयी
हँसमुखजी की हंसी
बंद ना हुयी
नौकरी पर बन आयी
हाथ पैर जोड़ कर
बचायी गयी
हद जब हो गयी ,
उनकी पत्नी को
किसी ने बीस की कह दिया
बीबी खुश हुयी
हँसमुखजी की हंसी
निकल गयी
बीबी की डांट सुननीपडी
तीन दिन खाने को
रोटी ना मिली
निरंतर पिटते,गाली खाते
फिर भी हँसते,मुस्काराते
लाख कोशिशों के बाद भी
खुद को रोक नहीं पाते
(फौत=म्रत्यु)
01-08-2011
1282-04-08-11

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