Tuesday, March 13, 2012

धन वैभव का खुशी से कोई लेना देना नहीं होता (काव्यात्मक लघु कथा)

उसकी आँखें
विशालकाय कोठी की
तरफ उठ ही जाती थी
जिसमें सजी धजी
जेवरों से लदी मेमसाब
रहती थी
सफ़ेद झक वर्दी में
ड्राइवरों के साथ कई
गाडिया खडी रहती थी
मन में इच्छाएं हिलोरें
लेने लगती
परमात्मा से प्रार्थना करती
किसी दिन उसे भी
उनके जैसा सुख नसीब
हो जाए
जीवन खुशियों से भर जाए
कब तक सब्जी की टोकरी
सर पर लादे
सर्दी,गर्मी,बरसात में
घूमती रहेगी
एक एक रूपये के लिए
झींकती रहेगी
आज अचानक कोठी में
पुलिस वालों की भीड़ देखी
तो समझ नहीं सकी
डर के मारे वहां से
खिसक चली
बाद में पता चला
साहब,मेमसाब में
निरंतर झगडा होता था
क्रोध में साब ने
मेमसाब और स्वयं को
गोली से मार दिया
उसका मन दहल गया
परमात्मा का ध्यान किया
प्रभु मेरी
पहले की प्रार्थनाओं पर
ध्यान मत देना
मेरी अज्ञानता के लिए
मुझे क्षमा करना
मैं जिस
परिस्थिती में भी हूँ
खुश हूँ
आज के पहले मुझे
पता नहीं था ,
धन वैभव का खुशी से
कोई लेना देना नहीं होता
जीवन में खुशी नहीं हो
तो सब व्यर्थ होता
13-03-2012
355-89-03-12

1 comment:

Anonymous said...

it is so very true......