Saturday, December 8, 2012

व्यथा में



व्यथा में रोते रोते
अचानक ख्याल आया
रोने से किसी को नहीं मिला
तो मुझे कैसे मिलेगा
मन की व्यथा कम करनी है
तो क्यों ना
किसी अपने से बात कर लूं
जो मन को पसंद हो
वो काम कर लूं
अच्छा संगीत सुन लूं
अच्छी किताब पढ़ लूं
मन को हल्का कर लूं
अपने को व्यवस्थित कर लूं
फिर से काम में जुट जाऊं
फिर कभी व्यथित ना होऊँ
ऐसा सोच रख लूं
924-42-08-12-2012
व्यथा ,व्यथित,रोना ,जीवन

1 comment:

Dr,Neha Nyati said...

nice poem!!!!!
delivering a nice message.....