Thursday, February 10, 2011

पहले कोई राजा,कोई रंक होता

239—01-11



पहले कोई राजा
कोई रंक होता 
निरंतर
सफ़र दोनों का 
एक जगह समाप्त
होता
मुकाम दोनों का
एक होता
सवारी इक सार
होती
शैया बांस,मूंज की
होती
दोनों सहारा कंधे का
लेते
शमशान में एक
जगह लेटते
लकड़ी की शय्या
पर सोते
उसी तरह जलाए
जाते
उसी तरह राख
होते
10-02-2011

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