224--02-11
मैं
पुराना हो गया
वक़्त बदल गया
सूर्य का ताप कम हो गया
चाँद ने ठंडक अपनी खो दी
पेड़ की हरी पत्तियाँ पीली लगती
तारीख मुश्किल से बदलती
इंसान आदमी कम
हैवान ज्यादा दिखता
आदमी आदमी से डरता
मुस्कराहट में शक
नज़र आता
“निरंतर” डर डर कर जीता
अपना भी पराया लगता
कौन किस की सुनता?
कौन किस को समझता?
किसी को चिंता
किसी की नहीं
सब वक़्त के हिसाब
से चल रहे
सबकी अपनी अपनी
मजबूरी
क्यों बार बार भूलता हूँ?
मैं पुराना हो गया
अब वक़्त बदल
गया
07-02-2011
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