Thursday, February 10, 2011

दिन गुजरते गए,नैन ना थके,इंतज़ार में खुले रहे

दिन गुजरते गए
नैन ना थके
इंतज़ार में खुले रहे
नींद भूल गए,अश्क सूख गए
वो नज़रों से ओझल
नैन बेचैनी से
ढूंढ रहे
निगाहों से निगाहें
मिलाने को आतुर
नैन से नैन लड़ाने को
व्याकुल
निरंतर आँखें मलते
धुंधलके में साफ़
नज़र आएँ
बार बार आँखें साफ़ करते
शायद अब दिख जाएँ
राहत आँखों को मिल जाए
नज़र अब तो आ जाएँ
परेशाँ निगाहों को
सुकून मिल जाए
25-11-2010

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