218--02-11
रात का
चुपके से जाना हुआ,भोर का
दबे पैर आना हुआ
सूरज ने धरती पर लालिमा
बिखेरी
किरणों ने सौगात उजाले की दी
चाँद मंद हुआ
सितारों का दिखना बंद हुआ
रात की निस्तब्धता
भंग हुयी
घोंसलों में रौनक बढ़ी,
पक्षियों ने चहचाहट से जगाया
पंख फैला आकाश में उड़ने लगे
धरती को ऊपर से निहारने लगे
उल्लू छिप गए
श्वान(कुत्ते)सुस्ता रह े
कलियाँ अंगडाई ले रही
महक फूलों की छाई
दैनिक क्रम में गति आयी
घरों में चहल पहल हुयी
बच्चे स्कूल जाने लगे
बड़े काम धंधे पर लगे
गृहणियां व्यस्त हुयी
शोर बढ़ता गया,सवेरा हो गया
पता चल गया
निरंतर सुबह ऐसे ही आती
दोपहर,शाम,रात होती
गति जीवन की चलती रहती
06-02-2011
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