235—01-11
दोपहर में अन्धेरा हो रहा
ज़िन्दगी में खौफ देख रहा
दरिया में गरम पानी बह रहा
चाँद आग बरसा रहा
दिल नफरत में जी रहा
ईमान कोने में दुबका बैठा
इंसानियत का जुलूस देख रहा
अपराध का मेला चल रहा
मोहब्बत का जनाजा निकल रहा
इंसान मर मर कर जी रहा
भगवान् समझ नहीं रहा
हैवान “निरंतर”पनप रहा
मन व्यथित हो रहा
दिल आज रो रहा
08-02-2011
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