बड़ी शिद्दत से
दर्द-ऐ-दिल सुनते हैं
लोग
दिलासा भी देते हैं
लोग
हाथ पकड़ते हैं
पर थाम कर रखते
नहीं लोग
निरंतर रिश्ते बनाते
फिर भूलते हैं लोग
ना जाने क्यूं साथ
निभाते नहीं लोग
या तो कुछ खता
होती होगी हम से
या फिर ज़माने का
दस्तूर निभाते हैं
लोग
दर्द-ऐ-दिल सुनते हैं
लोग
दिलासा भी देते हैं
लोग
हाथ पकड़ते हैं
पर थाम कर रखते
नहीं लोग
निरंतर रिश्ते बनाते
फिर भूलते हैं लोग
ना जाने क्यूं साथ
निभाते नहीं लोग
या तो कुछ खता
होती होगी हम से
या फिर ज़माने का
दस्तूर निभाते हैं
लोग
11-12-2011
1852-20-12
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