Thursday, December 29, 2011

मन के उद्यान में

मन के उद्यान में 
स्नेह,प्रेम से वंचित
भावनाओं के वृक्ष
अनमने भाव से
निस्तेज खड़े हुए
ना कुम्हलाये
ना मुरझाये
ना ही सूखे
स्नेह के फल ,
प्रेम के फूलों की
चाहत में
फिर भी जीवित  
आशा में
आकुलता से देख रहे
प्रतीक्षारत हैं
उसके लिए
जो अथक प्रयास के
बाद भी
उन्हें कभी मिला नहीं
 आशा उनकी
अभी भी जीवित
निरंतर व्याकुल
प्रेम भरे दो शब्द
सुनने के लिए
घ्रणा और स्वार्थ के
बादल छंट जाएँ
भावनाओं के आकाश में
प्रेम,स्नेह सम्मान की
किरणें प्रकट हो
मन के उद्यान को
फिर बहारों से
सुसज्जित करे
अपनों से रिश्तों पर
आस्था,विश्वास को
बनाए रखें
29-12-2011
1899-67-12

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