हमारी
हसरतों का कातिल
उन्हें कैसे कहें ?
हमारी खता की सज़ा
उन्हें कैसे दें ?
गर्दिश-ए-हालात की
ज़िम्मेदारी उनकी नहीं
उनकी रुसवाई भी
उनकी नहीं
कुछ किस्मत ही हमारी
ऐसी थी
हम ही ना रख सके
उन्हें सम्हाल कर
लगा ना सके
अरमानों की किश्ती
किनारे पर
उनके मुस्काराने को
मोहब्बत समझा था
हमने
वादों को हकीकत
माना था हमने
24-12-2011
1886-54-12
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