Thursday, December 29, 2011

हास्य कविता-मैं नहीं कहता,तुम पैसे मत खाओ ( व्यंग्य)


मैं नहीं कहता
तुम पैसे मत खाओ
तुम पैसे तो खाओ
पर इतने तो मत खाओ
पचा भी ना सको
अपच से
बीमार पड़ जाओ
खाना है तो
ऊँट के मुंह में जीरे
जितना खाओ
तुम तो इंसान हो
हाथी के चारे जितना
खा जाते हो
मैं कतई नहीं कहता
तुम झूठ मत बोलो
तुम झूठ तो बोलो
पर इतना तो मत बोलो
बोलने से पहले ही
पकडे जाओ
जनता का विश्वास ही
खो दो
मैं बिलकुल नहीं कहता
तुम घोटाले मत करो
तुम घोटाले तो करो
पर इतने तो मत करो
गरीब का अनाज ही
खा जाओ
गरीब भूख से मर जाए
सड़क दिखे ही नहीं
पुल छ महीने में गिर जाए
निर्दोष मारे जाएँ
मेरे देश के नेताओं
राजनीति तो करो
पर ऐसी तो मत करो
लोग तुमसे
नफरत करने लगें
तुम्हें चोर,डाकू समझने लगें
तुम्हारा नाम सुनते ही
मुंह से अपशब्द निकलें
मैं नहीं कहता
तुम किसी से डरो
पर कम से कम
भगवान् से तो डरो
गरीब की बद्दुआ मत लो 
ऊपर जा कर
क्या जवाब दोगे ?
यह भी तो सोचो
आम आदमी निरंतर
विनती करता रहा तुमसे
इन्सान हो
कम से कम इंसान सा
व्यवहार तो करो
अब यह भी समझ लो
आम आदमी चुप नहीं
बैठेगा
अपने को सुधार लो
प्रजा को राजा मान लो

29-12-2011
1900-68-12