Thursday, December 15, 2011

अपराध बोध (काव्यात्मक लघु कथा)


घंटों से स्कूल के बाहर लगे
नीम के पेड़ के नीचे
व्याकुल चेहरे पर खुशी झलकती
निरंतर आतुरता कम होती
पांच छ वर्ष का बालक दरवाज़े से
बाहर आता
दौड़ कर उसके पास जाता
वो स्नेह से सर पर हाथ फिराता
कभी खाने के लिए चाकलेट
कभी खेलने के लिए खिलोना देता
कभी पढने के लिए पसंद की
कॉमिक देता
ज्यादा बात नहीं करता
परमात्मा तुम्हें लम्बी उम्र दे
कह कर चला जाता
बालक वृद्ध की बातों और व्यवहार को
समझ नहीं पाता
पर वो भी उसे चाहने लगा 
रोज़ उससे मिलने का इंतज़ार करता 
बरसों स्नेह का आदान प्रदान चलता रहा
वो अधिक बूढा और बालक बड़ा हो गया
चलना फिरना भी दूभर हो गया
बीमार रहने लगा
पर छुट्टी के समय किसी तरह स्कूल
अवश्य पहुंचता
एक दिन वो भी बंद हो गया
तीन चार दिन गुजर गए
उसका नहीं आना बालक को
व्यथित करने लगा
किसी तरह पता मालूम कर
उसके घर पहुँच गया
देखा तो वृद्ध बिस्तर पर बीमारी से
झूझ रहा था
बगल में हूबहू बालक से मिलती जुलती
माला से सुसज्जित तस्वीर लगी थी
उसे समझ नहीं आया
कुछ पूछता उससे पहले ही
वृद्ध ने आँखें खोली
बालक को सामने देखते ही चेहरे पर
खुशी दिखाई देने लगी
इशारे से उसे पास बुलाया ,
स्नेह से हाथ सर पर रखा
दो आंसू ढलकाए
आँखें बंद हो गयी,गर्दन लुडक गयी
हाथ नीचे गिर गया
उसके प्राण निकल चुके थे
बालक कुछ देर रुका
फिर आंसू बहाते हुए चला गया
उसने खाना पीना छोड़ दिया
गुमसुम रहने लगा
फिर बीमार पड गया
माता पिता को कारण समझ नहीं आया
कुछ दिन बाद कारण जानने के लिए
किसी तरह दोनों वृद्ध के घर पहुंचे
वृद्ध की विधवा से पता चला
कुछ वर्ष पहले वृद्ध की गाडी से
दुर्घटना में एक बालक की
जान चली गयी थी
तब से उसका पती
निरंतर अपराध बोध में जीता रहा
खुद को उसकी मौत का
जिम्मेदार मानने लगा
एक दिन स्कूल से निकलते हुए
आपके पुत्र को देखा तो दंग रह गया
उसकी सूरत हूबहू दुर्घटना में
मृत बालक से मिलती थी
तब से बिना नागा उससे
मिलने जाने लगा
किसी तरह मृत बालक की तस्वीर
प्राप्त कर घर में लगाई
हर दिन उसकी पूजा करता
जिस दिन बालक उसे नहीं मिलता
घंटों तस्वीर के पास गुमसुम बैठ जाता
आंसू बहाता रहता
परमात्मा से माफी माँगता
आपके पुत्र के लम्बे जीवन
के लिए प्रार्थना करता
अदालत ने तो उसे माफ़ कर दिया था
लेकिन खुद को कभी माफ़ नहीं कर सका
सोचता था आपके पुत्र को प्यार देने से
मृत बालक की आत्मा को शांती मिलेगी
आपके पुत्र पर स्नेह की वर्षा करता रहा
माता पिता की आँखों से आंसूं बह निकले
कैसे पुत्र को सब बताएँगे ?
कैसे वृद्ध के स्नेह की पूर्ती करेंगे ?
सोचते सोचते भारी ह्रदय के साथ 
बिना कुछ कहे उठे 
और घर की ओर प्रस्थान कर दिया
15-12-2011
1864-32-12

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