Tuesday, December 13, 2011

तेरी बराबरी कैसे करूँ?


निरंतर सोचता हूँ
दर्द-ऐ-दिल
दुनिया को सुनाऊँ
बीते लम्हों  का
अफ़साना बताऊँ
जुबां खोलते हुए
डरता हूँ
ज़िक्र तेरा भी करना
होगा
तेरी बेवफाई का
आलम बताना पडेगा
तुझे बदनाम होना
पडेगा
उसे कैसे छुपाऊँ?
अधूरी हसरतों से
नकाब कैसे हटाऊँ?
बेफफायी का बदला
बेवफाई से क्यों दूं  ?
दिल से चाहा है तुझे
तेरी बराबरी कैसे करूँ?
इस लिए खामोश
रहता हूँ
चुपचाप सहता हूँ
14-12-2011
1860-28-12

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