Tuesday, December 13, 2011

ज़िन्दगी करवटों में गुजरती रही


सर्दी गर्मी बरसात
फुटपाथ पर रहता था
बचपन से बुढापा
फुटपाथ पर ही कटा था
रात को
सोने की कोशिश करता
कोई ना कोई सोने
नहीं देता
कभी गाडी का तेज़ हौर्न
कभी शराबियों की
गाली की आवाज़
कभी कुत्तों के
भोंकने की आवाज़
नींद को दूर भगाती
कभी पड़ोस के मकानों में से
किसी एक की खिड़की खुलती
आवाज़ आती ,
सर्दी में कहीं मर ना जाए
बरसात में भीग कर बीमार
ना हो जाए
खिड़की जितनी देर से
खुलती
उतनी ज़ल्दी बंद हो जाती
उसे सोने नहीं देती
कभी एक पोटली की
जायदाद कोई ले ना जाए
इस चिंता में उड़ जाती
कोई एक रात
बिना शोर के आती
तो शोर की आदत भी
सोने नहीं देती
निरंतर नींद से
आँख मिचोली चलती
रहती
रात गुज़रती भी नहीं
सुबह हो जाती
बरसों हो गए
नींद के इंतज़ार में उम्र
गुजर गयी
नींद रूठी की रूठी ही रही
ज़िन्दगी करवटों में
गुजरती रही
शायद नींद को भी
फुटपाथ पर
सोने की मजबूरी कभी
समझ नहीं आयी
लगता है
उसे भी नर्म बिस्तर की
आदत पड़ गयी
13-12-2011
1858-26-12

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