सर्दी गर्मी बरसात
फुटपाथ पर रहता था
बचपन से बुढापा
फुटपाथ पर ही कटा था
रात को
सोने की कोशिश करता
कोई ना कोई सोने
नहीं देता
कभी गाडी का तेज़ हौर्न
कभी शराबियों की
गाली की आवाज़
कभी कुत्तों के
भोंकने की आवाज़
नींद को दूर भगाती
कभी पड़ोस के मकानों में से
किसी एक की खिड़की खुलती
आवाज़ आती ,
सर्दी में कहीं मर ना जाए
बरसात में भीग कर बीमार
ना हो जाए
खिड़की जितनी देर से
खुलती
उतनी ज़ल्दी बंद हो जाती
उसे सोने नहीं देती
कभी एक पोटली की
जायदाद कोई ले ना जाए
इस चिंता में उड़ जाती
कोई एक रात
बिना शोर के आती
तो शोर की आदत भी
सोने नहीं देती
निरंतर नींद से
आँख मिचोली चलती
रहती
रात गुज़रती भी नहीं
सुबह हो जाती
बरसों हो गए
नींद के इंतज़ार में उम्र
गुजर गयी
नींद रूठी की रूठी ही रही
ज़िन्दगी करवटों में
गुजरती रही
शायद नींद को भी
फुटपाथ पर
सोने की मजबूरी कभी
समझ नहीं आयी
लगता है
उसे भी नर्म बिस्तर की
आदत पड़ गयी
13-12-2011
1858-26-12
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