Monday, December 26, 2011

मेरी मेहमान खाने की अलमारी में


मेरी मेहमान खाने की
अलमारी में
कई किताबें करीने से
सजी हैं
कुछ तन्मयता से पढी गयी
जान पहचान वालों के बीच
उनकी चर्चा की गयी
कुछ के कुछ प्रष्ठ ही  
कई ऐसी भी हैं
जिन्हें खोल कर देखा भी नहीं
कुछ सालों से
कुछ महीनों से अलमारी की
शोभा बढ़ा रही हैं
हर आने वाले को
खामोशी से मेरे
साहित्य प्रेमी  होने का
सबूत देती हैं
जिन्हें खोल कर भी नहीं देखा
वो किताबें
मन में व्यथित भी होती होंगी
सोचती होंगी
जितने मन से लेखक ने
उनका सृजन किया
उतने ही मन से
क्यों मैंने उन्हें अलमारी में
धूल खाने को सजाया
मेरे कई चेहरों में से एक
साहित्य प्रेमी होने का
चढ़ाया
जिन्हें मन से पढ़ा
वो खुश होती होंगी
मेरी बढ़ाई करती होंगी
मेरे साहित्य प्रेमी होने का
साक्ष्य देती होंगी
मेरी पढने की इच्छा ,
अनिच्छा
किताबों में द्वेष पैदा करती
 होगी
मुझे इन सब बातों से
कोई मतलब नहीं
निरंतर
नयी किताबें लिखी जायेंगी
जो प्रसिद्द होंगी
चाहे पढूं नहीं
पर दिखाने के लिए खरीदी
जायेंगी
एक अलमारी भर जायेगी
दूसरी में सजा दी
जायेगी
26-12-2011
1889-57-12

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