दिल को लाख
मगर रुका नहीं
मनाया तो माना नहीं
उनको देखते ही
मचलने लगा
उसे मंजिल का पता
चल गया
सपनों की दुनिया में
खो गया
दिल बेचारा गुलाम
हो चुका था
मोहब्बत के जाल में
फंस चुका था
अंजाम क्या होगा ?
सिर्फ खुदा को पता था
उसे तो निरंतर
रातों को जागना था
इंतज़ार में जीना था
इंतज़ार में जीना था
16-12-2011
1866-34-12
7 comments:
बहुत खूब सर!
----
कल 19/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत खूब सर..
सादर...
waah ...umdaa
bahut sundar rachana hai....
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
बहुत खूब ...
Post a Comment