Tuesday, December 27, 2011

हम स्वतंत्र हैं ,ये प्रजातंत्र है


हर 
चेहरे पर व्यथा
हर ह्रदय में दुःख
हर मन व्यथित
भयावह स्थिती है
महंगाई से जनता
त्रस्त है
देश भ्रष्टाचार की
बीमारी से ग्रसित है
नेता मस्त हैं
हम स्वतंत्र हैं
ये प्रजातंत्र है
गरीब
उसका मतदाता
भूख
उसका आभूषण
रोना उसकी आदत
काम जैसा भी मिले
जितना भी मिले
मिले ना मिले
उसे तो जीना है
लुभावने वादों के
प्रलोभन में
फंसना है
हर पांच साल में
मत देना है
फिर से नेताओं को
जिताना है
प्रजातंत्र को
ज़िंदा रखना
उसका कर्तव्य है
स्वतंत्र होने का
साक्ष्य देना है
फिर पांच साल
रोना है
27-12-2011
1894-62-12

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