Monday, December 26, 2011

ग़मों का सैलाब भरा है दिल में


ग़मों का
सैलाब भरा है दिल में
उसे बाहर निकलने से
रोके कोई
गर बाहर निकल गया
चूर चूर हो कर
फिर ना सिमट सकूं
ऐसा बिखर जाऊंगा
कोई मिल जाए
मेरे दर्द को समझ ले 
मुझ को
टूटने से पहले बचा ले
फिर से हँसना सिखा दे
खिजा को बहार में
बदल दे
निरंतर नए लोगों से
मिलता हूँ
कोई अपना सा
मिल जाए
तलाश में भटकता हूँ
26-12-2011
1890-58-12

1 comment:

Anonymous said...

है हमें ये यकीं,सैलाब बह जायेगा
जो समझे दर्द को वो ज़रूर आएगा
मिट जाएंगे सारे दुख दर्द आपके
खुशियों की बौछार वो कर जाएगा।