ग़मों का
सैलाब भरा है दिल में
उसे बाहर निकलने से
रोके कोई
गर बाहर निकल गया
चूर चूर हो कर
फिर ना सिमट सकूं
ऐसा बिखर जाऊंगा
कोई मिल जाए
मेरे दर्द को समझ ले
मुझ को
टूटने से पहले बचा ले
फिर से हँसना सिखा दे
खिजा को बहार में
बदल दे
निरंतर नए लोगों से
मिलता हूँ
कोई अपना सा
मिल जाए
तलाश में भटकता हूँ
26-12-2011
1890-58-12
1 comment:
है हमें ये यकीं,सैलाब बह जायेगा
जो समझे दर्द को वो ज़रूर आएगा
मिट जाएंगे सारे दुख दर्द आपके
खुशियों की बौछार वो कर जाएगा।
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