Sunday, December 25, 2011

हमें फिर से हँसना सिखा दो

क्या हुआ गर
ज़ख्म कहीं और खाए
किसी और की
रुसवाई का शिकार हुए
हम बीमार-ऐ-इश्क हैं
तुम्हें दिल का
चारागर समझते
बड़ी उम्मीद से
वास्ते इलाज आये हैं
थोड़ा सा
अहसान हम पर कर दो
हमदर्दी का मरहम
लगा दो
दर्द-ऐ-दिल सुन लो
जो हुआ उसे भूलना
सिखा दो
मोहब्बत पर यकीं
फिर से
कायम करवा दो
हमें फिर से हँसना
सिखा दो

(चारागर =चिकत्सक,डाक्टर)
25-12-2011
1888-56-12

1 comment:

Anonymous said...

भावनाओं से अभिभूत,सुंदर प्रस्तुति।