कल तक
खूब चहकते थे
खूब बहकते थे
दिलों में
आग लगाते थे
हुस्न के
गरूर में बेहोश थे
महफ़िल-ऐ-जान
होते थे
उम्र ने नहीं बख्शा
अपना जलवा दिखा
दिया
उन्हें हकीकत से
रूबरू करा दिया
चेहरे का नूर कम
हो गया
आज एक सूरत भी
मयस्सर नहीं
उन्हें देखने के लिए
एक कंधा भी नहीं
रोने के लिए
झूंठी दिलासा ही
देने के लिए
18-12-2011
1869-37-12
1 comment:
i like it , jandgi ki hakiqat
Post a Comment