Sunday, December 18, 2011

कल तक खूब चहकते थे


कल तक
खूब चहकते थे
खूब बहकते थे
दिलों में
आग लगाते थे
हुस्न के
गरूर में बेहोश थे 
महफ़िल-ऐ-जान
होते थे
उम्र ने नहीं बख्शा
अपना जलवा दिखा
दिया
उन्हें हकीकत से
रूबरू करा दिया
चेहरे का नूर कम
हो गया
आज एक सूरत भी
मयस्सर नहीं
उन्हें देखने के लिए
एक कंधा भी नहीं
रोने के लिए
झूंठी दिलासा ही 
देने के लिए
18-12-2011
1869-37-12

1 comment:

krishnasukhwal said...

i like it , jandgi ki hakiqat