Tuesday, December 13, 2011

ना ज़मीं तेरी ना आस्मां तेरा ,तूं इक मुसाफिर यहाँ


ना ज़मीं तेरी
ना आस्मां तेरा
तूं इक मुसाफिर यहाँ
फिर क्यूं करता है
तेरा मेरा
देखता है सपने
निरंतर
रखता है इच्छाएं अपार
पालता है  बैर मन में
जताता है प्यार
जोड़ता रहता है
जीवन भर 
करता नहीं आराम
छोड़ जाता हैं
यहाँ का यहीं पर
सुन ले इक बात ध्यान से
इसी में गर डूबा रहा
लेगा नहीं कोई नाम तेरा
करना है तो कुछ ऐसा कर
काम इंसान के आये तूं
 
जोड़ना है तो
जोड़ लोगों का प्यार
तेरे जाने के बाद भी
करें लोग तुझे याद
ना ज़मीं तेरी
ना आस्मां तेरा
तूं इक मुसाफिर यहाँ
13-12-2011
1857-25-12

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