बाल बिखरे हुए
दाढी बढी हुयी
पर आँखों में
दाढी बढी हुयी
पर आँखों में
आशा की चमक
कंधे पर
भोजन पानी से भरा
भोजन पानी से भरा
झोला टंगा हुआ
सफ़ेद कुड़ते पायजामा
पहने
तेज़ क़दमों से चलते हुए
जंगल के छोर पर लगे
अमलतास के पेड़ के
पहने
तेज़ क़दमों से चलते हुए
जंगल के छोर पर लगे
अमलतास के पेड़ के
नीचे जा बैठता था
शाम तक
शाम तक
उसकी प्रतीक्षा करता
फिर अन्धेरा होने से पहले
बुझे मन से घर लौट आता
आख़िरी
आख़िरी
बार वही मिली थी वो
जाते जाते अगले इतवार को
जाते जाते अगले इतवार को
वहीं मिलने का
वादा किया था उसने
उसे अपने प्यार पर
उसे अपने प्यार पर
अटूट विश्वास था
एक दिन वो ज़रूर आयेगी
इस आशा में
एक दिन वो ज़रूर आयेगी
इस आशा में
उसने विवाह नहीं किया
बरसों से हर इतवार को
तडके सवेरे जंगल की ओर
निकल पड़ता था
29-02-2012
262-173-02-12
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