ना कोई समझा
ना ही जाना हमें
हँसने की चाह ने
इतना रुलाया हमें
जीना ही भूल गए
हमदर्दी की आस में
दर्द गले लगाते रहे
ना बची अब कोई चाह
ना किसी से कोई आस
हर शख्श से
खौफ खाते हैं हम
फिर ज़ख्म खाने से
डरते हैं हम
अब सोच लिया हमने
खामोशी से सहते रहेंगे
कहेंगे नहीं अपने दर्द
अब किसी से
चले जायेंगे दुनिया से
इक दिन यूँ ही
रोते रोते
11-02-2012
148-59-02-12
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