हमने ही रोने का
कोई बहाना नहीं बनाया
जी भर के
अश्कों को बहने दिया
क्या होता
अगर सच को झुठलाते?
हमेशा की तरह कोई
बहाना बनाते
मन ही मन
निरंतर घुटते रहते
हँसते हुए भी रोते से
दिखते
चेहरे से लोग हकीकत
जान लेते
झूठे शक शुबहा पालते
हर जगह चर्चा करते
खुले आम मज़ाक
बनाते
ग़मों के बोझ को
और बढाते
और बढाते
कल पता चलता
आज ही
पता चल जाने दो
यही सोच हम रोते रहे
मन को
हल्का करते रहे
खुले आम
अश्कों को बहाते रहे
16-02-2012
175-86-02-12
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